श्रीराम की वापसी: क्यों मनाते हैं दीपावली?

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रामराज्य की वापसी: श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने की दिव्य गाथा और दीपावली का महापर्व

प्रस्तावना

भारत की सांस्कृतिक धरोहर में भगवान श्रीराम का नाम अत्यंत पूजनीय और आदर्श पुरुष के रूप में लिया जाता है। वे केवल एक राजा नहीं थे, बल्कि धर्म, मर्यादा, त्याग और आदर्श का प्रतीक थे। उनके जीवन की कथा ‘रामायण’ में वर्णित है, जिसे महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा और तुलसीदास ने अवधी भाषा में ‘रामचरितमानस’ के रूप में जन-जन तक पहुँचाया।

यह कथा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षाओं से भी भरी हुई है। श्रीराम के जीवन में जितनी पीड़ा थी, उतनी ही गरिमा भी। इस कथा में हम जानेंगे कि कैसे श्रीराम के वनवास, सीता हरण, रावण वध और अंततः अयोध्या वापसी के साथ जुड़ी है दीपावली की दिव्य परंपरा।


अयोध्या का स्वर्ण युग और कैकेयी का वरदान

अयोध्या में राजा दशरथ का शासन था। वे तीन रानियों— कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी— के साथ रहते थे। भगवान श्रीराम, कौशल्या के पुत्र थे और सबसे बड़े थे। भरत कैकेयी के पुत्र थे, जबकि लक्ष्मण और शत्रुघ्न सुमित्रा के। श्रीराम गुण, पराक्रम और नीति में श्रेष्ठ थे।

राजा दशरथ ने निर्णय लिया कि श्रीराम का राज्याभिषेक किया जाए। अयोध्या में उत्सव का वातावरण था। परंतु कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी के मन में ईर्ष्या का बीज बो दिया। मंथरा ने उसे उसके दो वरदान याद दिलाए जो दशरथ ने उसे पहले दिए थे।

कैकेयी ने वह वरदान माँगा — राम को 14 वर्ष का वनवास और भरत को अयोध्या का राजा बनाने का वचन।

राजा दशरथ टूट गए, पर उन्होंने वचन निभाया। श्रीराम ने बिना किसी विरोध के वनवास स्वीकार किया। सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ चले गए। दशरथ, राम के वियोग में कुछ ही समय में मृत्यु को प्राप्त हुए।


वनवास के वर्ष और असुरों का आतंक

वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अनेक ऋषि-मुनियों से मिले। उन्होंने राक्षसों का संहार किया जो यज्ञ-विध्वंस करते थे। इस बीच रावण की बहन शूर्पणखा ने श्रीराम पर मोहित होकर विवाह प्रस्ताव रखा। राम ने इंकार कर दिया और लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी।

इस अपमान का बदला लेने के लिए लंका के रावण ने मारीच का सहारा लेकर माता सीता का हरण कर लिया। वह उन्हें अपने पुष्पक विमान में उठाकर लंका ले गया और अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा।


वानर सेना और हनुमान की भक्ति

राम और लक्ष्मण सीता को खोजते-खोजते किष्किंधा पहुंचे जहाँ उनकी मित्रता हनुमान और सुग्रीव से हुई। वानरराज बाली का वध कर राम ने सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया।

हनुमान ने समुद्र पार कर लंका में सीता माता को खोजा, उन्हें राम की अंगूठी दी और लंका जलाकर लौटे।

राम ने वानर सेना के साथ समुद्र पर रामसेतु का निर्माण किया और लंका पर चढ़ाई की।


रावण वध और धर्म की स्थापना

लंका युद्ध में रावण के साथ कई घमासान युद्ध हुए। मेघनाद, कुम्भकर्ण जैसे योद्धाओं को पराजित कर अंततः श्रीराम ने रावण का वध किया।

रावण विद्वान था पर अहंकारी था। उसने अधर्म किया, स्त्री का अपहरण किया। इसलिए वह मारा गया।

विजय के बाद श्रीराम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया और सीता को अग्नि परीक्षा से सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।


श्रीराम की अयोध्या वापसी: दीपों का महोत्सव

14 वर्षों का वनवास पूर्ण होने पर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे। उनके आगमन की सूचना से अयोध्यावासी अत्यंत आनंदित हुए।

नगरवासियों ने घर-घर दीप जलाए, तोरण बाँधे, सड़कों को फूलों से सजाया। यह अमावस्या की रात्रि थी, पर दीपों की रौशनी से अंधकार मिट गया।

इसी शुभ दिन को हम ‘दीपावली’ या ‘दीवाली’ के रूप में मनाते हैं।


दिवाली: केवल उत्सव नहीं, आध्यात्मिक संदेश

  • दीवाली सत्य की जीत का प्रतीक है।
  • यह हमें सिखाती है कि धैर्य, त्याग, भक्ति और न्याय से जीवन में हर अंधकार को मिटाया जा सकता है।
  • श्रीराम का चरित्र हर व्यक्ति को कर्तव्यनिष्ठ, सच्चरित्र और सहनशील बनने की प्रेरणा देता है।
  • यह पर्व परिवार, समाज और आत्मा को जोड़ने का अवसर भी है।

निष्कर्ष: रामराज्य की स्थापना और आज का संदर्भ

राम का राज्य — रामराज्य — न्याय, शांति और प्रजा के कल्याण का प्रतीक था। आज जब हम भ्रष्टाचार, अन्याय और हिंसा के युग में जी रहे हैं, श्रीराम का जीवन हमें बताता है कि मर्यादा और धर्म का पालन कर कोई भी व्यक्ति महान बन सकता है।

दिवाली का पर्व केवल मिठाई, पटाखों और सजावट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आत्मिक जागरण का पर्व है — जब हम अपने भीतर के रावण (अहंकार, क्रोध, लोभ) का वध करके राम (धर्म, प्रेम, करुणा) को स्थान देते हैं।


🙏 जय श्रीराम! दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं! 🙏

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